सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विश्व के प्राचीनतम साहित्य संहिता और अरण्य ग्रंथों में इंद्र के वज्र और धनुष-बाण का उल्लेख मिलता है। भारत में धनुष-बाण का सबसे ज्यादा महत्व था

विश्व के प्राचीनतम साहित्य संहिता और अरण्य ग्रंथों में इंद्र के वज्र और धनुष-बाण का उल्लेख मिलता है। भारत में धनुष-बाण का सबसे ज्यादा महत्व था इसीलिए विद्या के संबंध में एक उपवेद धनुर्वेद है।
शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था।
पिनाक (Pinaka) : यह सबसे शक्तिशाली धनुष था। संपूर्ण धर्म, योग और विद्याओं की शुरुआत भगवान शंकर से होती है और उसका अंत भी उन्हीं पर होता है। भगवान शंकर ने इस धनुष से त्रिपुरासुर को मारा था। त्रिपुरासुर अर्थात तीन महाशक्तिशाली और ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त असुर। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।

देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज इन्द्र को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शादी में 7 फेरों के साथ लिए जाने वाले सात वचन

                   💐प्रथम वचन💐 तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सदैव यह प्रियवयं कुर्याणि। वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी                          अर्थ यदि आप कोई व्रत-उपवास में धार्मिक कार्य या तीर्थयात्रा पर जाएंगे तो मुझे भी अपने साथ लेकर जाएंगे यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपकी वामांग में आना स्वीकार करती हूं।                    💐दूसरा वचन💐 पुज्यौ यथा सवौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो  निजकर्म कुर्याम। वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनम द्वितीयं।।                             अर्थ आप अपने माता -पिता की तरह मेरे माता-पिता का भी सम्मान करेंगे और परिवार की मर्यादा का पालन करेंगे । यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना चाहता करती हूं।                ...

इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ

*इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।* *दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है।*  *आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।* *जे ए माॅण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष पश्चात Voyages and Travels into the East Indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टाॅम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो माॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का...

मनु का विरोध क्यों,इस पुस्तक का लिंक नीचे दिया गया है

आजकल हवा में एक शब्द उछाल दिया जाता है'- मनुवाद किंतु इसका अर्थ नहीं बताया गया है |इसका प्रयोग भी उतना ही अस्पष्टऔर लचीला है जितना राजनीती शब्दों का ।मनुस्मृति के निष्कर्ष के अनुसार मनुवाद का सही अर्थ है गुण क्रम योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित विचार धारण और तब अगुण अकरम योग्यता के अश्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित विचारधारा को कहा जाएगा गैर मनुवाद अंग्रेज  आलोचकों से लेकर आज तक के मनु विरोधी भारतीय लेखकों ने मनु और मनु स्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है ।वह एकांगी विकृत भयावह और पूर्वाग्रह युक्त है उन्होंने सुंदर पक्ष सर्वथा उपेक्षा करके असुंदर पक्ष को ही उजागर किया है इसमें मैं केवल मनु की छवि को आघात पहुंचा है अपितु भारतीय धर्म संस्कृत संस्कृति सभ्यता साहित्य इतिहास विशेषतह धर्म शास्त्रों का विकृत चित्र प्रस्तुत होता है उसे देश विदेश में उनके प्रति भ्रांत धारणा बनती हैं धर्म शास्त्रों का व्रथा अपमान होता है हमारे गौरव का हास होता है इस लेख के उद्देश्य हैं मनु और मनुस्मृति की वास्तविकता का ज्ञान कराना सही मूल्यांकन करना इस संबंधी भ्रांतियों को दूर करना और सत्य को सत्...