आजकल हवा में एक शब्द उछाल दिया जाता है'- मनुवाद किंतु इसका अर्थ नहीं बताया गया है |इसका प्रयोग भी उतना ही अस्पष्टऔर लचीला है जितना राजनीती शब्दों का ।मनुस्मृति के निष्कर्ष के अनुसार मनुवाद का सही अर्थ है गुण क्रम योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित विचार धारण और तब अगुण अकरम योग्यता के अश्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित विचारधारा को कहा जाएगा गैर मनुवाद
अंग्रेज आलोचकों से लेकर आज तक के मनु विरोधी भारतीय लेखकों ने मनु और मनु स्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है ।वह एकांगी विकृत भयावह और पूर्वाग्रह युक्त है उन्होंने सुंदर पक्ष सर्वथा उपेक्षा करके असुंदर पक्ष को ही उजागर किया है इसमें मैं केवल मनु की छवि को आघात पहुंचा है अपितु भारतीय धर्म संस्कृत संस्कृति सभ्यता साहित्य इतिहास विशेषतह धर्म शास्त्रों का विकृत चित्र प्रस्तुत होता है उसे देश विदेश में उनके प्रति भ्रांत धारणा बनती हैं धर्म शास्त्रों का व्रथा अपमान होता है हमारे गौरव का हास होता है इस लेख के उद्देश्य हैं मनु और मनुस्मृति की वास्तविकता का ज्ञान कराना सही मूल्यांकन करना इस संबंधी भ्रांतियों को दूर करना और सत्य को सत्य स्वीकार करने के लिए सहमत करना इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जन्मना जाति व्यवस्था से हमारे समाज और राष्ट्र का हास एवं पतन हुआ है और भविष्य के लिए घातक है किंतु इसे एक परिवर्ती त्रुटि के कारण समस्त गौरव में अतीत को कलंकित करना और उसे नष्ट-भ्रष्ट करने का कथन करना भी अयोग्यता अदूरदर्शिता दुर्भावना और दूर लक्ष्य पूर्ण है यह आर्य हिंदू धर्म संस्कृति सभ्यता और अस्तित्व की जड़ों में कुठाराघात के समान है संसार की सभी व्यवस्थाएं शत-प्रतिशत खरी और सर्वमान्य नहीं होती परिवर्ती जाति व्यवस्था की तरह आज की व्यवस्था भी पूर्ण नहीं है यदि कोई त्रुटि आ जाए तो उसका परिमार्जन किया जा सकता है हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने इसके लिए एक उदाहरण मूलमंत्र बहुत पहले से दे रखा है
यानी अस्माकं सुचरीतानी,तानी त्वया उपस्यानी, नो इतराणिअर्थात हमारे जो उत्तम आचरण हैं उन्हीं का अनुसरण करना अंयथा नहीं
https://drive.google.com/file/d/0B3WJuAUaJ2IxRlNrWnhiempMdEU/view?usp=drivesdk
अंग्रेज आलोचकों से लेकर आज तक के मनु विरोधी भारतीय लेखकों ने मनु और मनु स्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है ।वह एकांगी विकृत भयावह और पूर्वाग्रह युक्त है उन्होंने सुंदर पक्ष सर्वथा उपेक्षा करके असुंदर पक्ष को ही उजागर किया है इसमें मैं केवल मनु की छवि को आघात पहुंचा है अपितु भारतीय धर्म संस्कृत संस्कृति सभ्यता साहित्य इतिहास विशेषतह धर्म शास्त्रों का विकृत चित्र प्रस्तुत होता है उसे देश विदेश में उनके प्रति भ्रांत धारणा बनती हैं धर्म शास्त्रों का व्रथा अपमान होता है हमारे गौरव का हास होता है इस लेख के उद्देश्य हैं मनु और मनुस्मृति की वास्तविकता का ज्ञान कराना सही मूल्यांकन करना इस संबंधी भ्रांतियों को दूर करना और सत्य को सत्य स्वीकार करने के लिए सहमत करना इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जन्मना जाति व्यवस्था से हमारे समाज और राष्ट्र का हास एवं पतन हुआ है और भविष्य के लिए घातक है किंतु इसे एक परिवर्ती त्रुटि के कारण समस्त गौरव में अतीत को कलंकित करना और उसे नष्ट-भ्रष्ट करने का कथन करना भी अयोग्यता अदूरदर्शिता दुर्भावना और दूर लक्ष्य पूर्ण है यह आर्य हिंदू धर्म संस्कृति सभ्यता और अस्तित्व की जड़ों में कुठाराघात के समान है संसार की सभी व्यवस्थाएं शत-प्रतिशत खरी और सर्वमान्य नहीं होती परिवर्ती जाति व्यवस्था की तरह आज की व्यवस्था भी पूर्ण नहीं है यदि कोई त्रुटि आ जाए तो उसका परिमार्जन किया जा सकता है हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों ने इसके लिए एक उदाहरण मूलमंत्र बहुत पहले से दे रखा है
यानी अस्माकं सुचरीतानी,तानी त्वया उपस्यानी, नो इतराणिअर्थात हमारे जो उत्तम आचरण हैं उन्हीं का अनुसरण करना अंयथा नहीं
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