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पहले के सोमरस और वर्तमान शराब में अंतर

आज वो कुछ जानकारी है जो सोमरस बनाने के बारे में है जिसे शराबी लोग आज के शराब से तुलना करते है ताकि उनकी अपनी बुराई छुप जाए... पहले ही पोस्ट में बता चूका हूँ की सोमरस की विधि से शराब नहीं बनाई जा सकती क्यूंकि उसमे दूध और दही मिक्स होता था.. और ये अंगूर का रस तो कतई भी नहीं था.. सोम नाम की खुद ही एक औषधि थी.. **ऊखल और मूसल द्वारा निष्पादित सोम को पात्र से निकालकर पवित्र कुशा के आसन पर रखें और अवशिष्ट को छानने के लिए पवित्र चर्म पर रखें।  (ऋग्वेद सूक्त 28 श्लोक 9) ** सोम एक औषधि है जिसको कूट-पीसकर इसका रस निकालते हैं। निरुक्त शास्त्र (11-2-2) सोम को गाय के दूध में मिलाने पर ‘गवशिरम्’ दही में ‘दध्यशिरम्’ बनता है। शहद अथवा घी के साथ भी मिश्रण किया जाता था। सोम रस बनाने की प्रक्रिया वैदिक यज्ञों में बड़े महत्व की है। इसकी तीन अवस्थाएं हैं- पेरना, छानना और मिलाना। वैदिक साहित्य में इसका विस्तृत और सजीव वर्णन उपलब्ध है। सोम के डंठलों को पत्थरों से कूट-पीसकर तथा छलनी से छानकर प्राप्त किए जाने वाले सोमरस के लिए इंद्र, अग्नि ही नहीं और भी वैदिक देवता लालायित रहते हैं । सोम लताएं ...

वेदों की देन है लोकतंत्र की अवधारणा

लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। ऋग्वेद में सभा और समिति का जिक्र मिलता है जिसमें राजा, मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई फैसला लेता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था। इंद्र नाम का एक पद होता था जिसे राजाओं का राजा कहा जाता था। हालांकि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। भारत में गणतंत्र का विचार वैदिक काल से चला आ रहा है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। वैदिक साहित्य में, विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर हमारे यहां गणतंत्रीय व्यवस्था ही थी। महाभारत में भी लोकतंत्र के इसके सूत्र मिलते हैं। पाणिनी की अष्ठाध्यायी में जनपद शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया है, जिनकी शासनव्यवस्था जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में रहती थी। अत: यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यूनान के गणतंत्रों से पहले ही भा...

गुरुकुल शिक्षा पद्वति

👉 गुरूकुल के वीर ब्रम्हचारी ... आएगें खत अरब, उसमे ये लिखा होगा । कि गुरूकुल का ब्रम्हचारी, हलचल मचा रहा होगा ।। प्रश्नोत्तरी ( गुरूकुल शिक्षा पद्धति ) :- प्रश्न :- गुरूकुल शिक्षा प्रणाली क्या होती है ? उत्तर :- घर में न रहकर गुरू के अधीन रहते हुए ब्रह्मचर्य पूर्वक त्याग, तपस्या युक्त जीवन यापन करते हुए विद्या अर्जन करना गुरूकुल शिक्षा प्रणाली है । प्रश्न :- ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी किसे कहते हैं ? उत्तर :- जो आचार्य कुल में रहकर शरीर की रक्षा, चित की रक्षा करते हुए विद्या के लिये प्रयत्न करे उसे ब्रह्मचारी या ब्रह्मचारिणी कहते हैं । प्रश्न :- गुरूकुल में कितनी आयु के बच्चों का प्रवेश होता है ? उत्तर :- गुरूकुल में 6 वर्ष की आयु में प्रवेश होता है । या अपवाद रूप में किसी गुरूकुल में बड़ी आयु में भी प्रवेश होता ही है । प्रश्न :- गुरूकुल में प्रवेश पाने वाले बच्चों की पारिवारिक अवस्था कैसी होनी चाहिये ? उत्तर :- गुरूकुल में अमीर, गरीब, राजा, दरिद्र, आदिवासी, अछूत सबका समान रूप से प्रवेश हो सकता है, कोई भेद भाव नहीं है । प्रश्न :- गुरूकुलीय विद्यार्थी के भो...

केंद्र में कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद करीब दर्जन भर तथाकथित समाचार वेबसाइट कुकुरमुत्तों की तरह उग आईं।

केंद्र में कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद करीब दर्जन भर तथाकथित समाचार वेबसाइट कुकुरमुत्तों की तरह उग आईं। इनमें से ज्यादातर वेबसाइटों के पीछे कांग्रेस के प्रति समर्पित माने जाने वाले पुराने जमे-जमाए पत्रकार हैं। इनकी फंडिंग का जरिया बेहद रहस्यमय होता है। कुछ को विदेशों से पैसे मिल रहे हैं और कुछ को वे बड़े लोग फंड कर रहे हैं जो केंद्र में हिंदुत्ववादी सरकार को हटाकर हर हाल में कांग्रेस को सत्ता में देखना चाहते हैं। इनमें कुछ वेबसाइट अपने पत्रकारों को मोटा वेतन भी देती हैं। इन सभी की समाचार सामग्री को देखें तो समझ जाएंगे कि ये किसके लिए काम कर रही हैं। दरअसल ये 'सुपारी पत्रकारिता' का नया अवतार है। कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के लिए ये तमाम वेबसाइट स्थापित करवाई गई हैं। पिछले दिनों 'द वायर' नाम की ऐसी ही एक वेबसाइट ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे के व्यापार को लेकर मनगढ़ंत रिपोर्ट छापी। व्यापार की सामान्य जानकारी रखने वाले भी समझ रहे हैं कि इस कंपनी के कामकाज में ऐसा कुछ नहीं है जिससे अनुचित लाभ की बात साबित होती हो। वेबसाइट ने कंपनी को 80 करोड़ रु. के 'फाय...

🙏इसे पूरा न पढा तो कुछ नहीं पढा......!!....?? -: "आज किसी ने लिखा..जिसे भारतवासियों ने इतनी सक्षमता दी फिर भी वो बार-बार रोता क्यों है...?":- भाव साक्षात्कार से निकला स्पष्टीकरण

🙏इसे पूरा न पढा तो कुछ नहीं पढा......!!....?? -: "आज किसी ने लिखा..जिसे भारतवासियों ने इतनी सक्षमता दी फिर भी वो बार-बार रोता क्यों  है...?":- भाव साक्षात्कार से निकला स्पष्टीकरण एवं उत्तर::-- वो बहुत कुछ करना चाहता है अपनी संस्कृति के लिए,सनातन के लिए,राष्ट के लिए ! वो पूरी दूनिया को अपनी प्रतिभा,योग्यता,परिश्रम और साहस का लौहा मनवा रहा है! वो संसार की किसी भी ताकत से लडने को तैयार है,अपने भारत के लिए! परन्तु वो अपनों की ही उतावली, बचकानापन, अति महत्वकांक्षाओं, अपरिपक्वताओं भरी तत्काल सभी चाहतों की पूर्ति के हठ,अगडम-बगडम क्रिया-कलापों एवं टाँग अडाई से परेशान है! वो खुलकर रो भी नहीं सकता क्योंकि अपनों के अधैर्यशील कारनामों-मुर्खताओं को बाहर बताने पर भी तो विरोधी अधिक घेरगें! इससे नुकसान तो उस सोच,विचार,सिद्धांत और कार्यों का ही होगा,जिसे वो राष्ट प्रेम कहता हैं-धर्म मानता है-जिसे हम संस्कृति कहते हैं! वो रो नहीं पाता है,रूआँसा होता रहता है..! वो जिस दिन रो देगा, सच मानौ-हम तुम बहुत से भी रोयेंगें..परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी होगी! वो अन्दर से पीडित है बहुत कुछ करने ...

इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ

*इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बातें हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी।* *दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है।*  *आस पास मीनारें खड़ी की गई और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।* *जे ए माॅण्डेलस्लो ने मुमताज की मृत्यु के 7 वर्ष पश्चात Voyages and Travels into the East Indies नाम से निजी पर्यटन के संस्मरणों में आगरे का तो उल्लेख किया गया है किंतु ताजमहल के निर्माण का कोई उल्लेख नहीं किया। टाॅम्हरनिए के कथन के अनुसार 20 हजार मजदूर यदि 22 वर्ष तक ताजमहल का निर्माण करते रहते तो माॅण्डेलस्लो भी उस विशाल निर्माण कार्य का...

इन दो चार महिलाओं ने श्रीराम की आरती उतारकर जैसे ही ये सन्देश देना चाहा कि सचमुच में एक दो मुस्लिम है जो कट्टर नहीं है...

इन दो चार महिलाओं ने श्रीराम की आरती उतारकर जैसे ही ये सन्देश देना चाहा कि सचमुच में एक दो मुस्लिम है जो कट्टर नहीं है... तभी वो सारे मुस्लिम जो tv पर रोज आकर भाजपा को गंगा जमुनी तहजीब का पाठ पढ़ाते थे.. वो औकात में आ गए.. असली रूप में आ गए और कह दिया कि अल्लाह को छोड़कर इन महिलाओं ने दूसरे भगवान की पूजा कर दी इसलिए ये लोग आज से मुसलमान नहीं रहे.. इन महिलाओं की आड़ में मुस्लिम समाज खुद को अच्छा साबित करने की नौटंकी कर सकते थे.. जैसे अब्दुल कलाम और हमीद जैसों की आड़ में करते हैं.. पर जल्दबाजी में मौका चूक गए और अपने असली जिहादी रूप का दर्शन करा गए... वैसे मैने ये गौर किया है कि इस्लाम मे सिर्फ महिलाएं ही हैं जो हिन्दू धर्म को आदर देती है.. और वो भी गिनी चुनी... ये वो माताएं बहनें हैं जिनके अंदर अपने घटिया समाज से लड़ने की थोड़ी बहुत हिम्मत होती है।